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भिषेक नायर की बर्खास्तगी: Was it the right decision

2025 के आईपीएल सीजन के रोमांचक और जोशपूर्ण माहौल के बीच भारतीय क्रिकेट से जुड़ी एक चौंकाने वाली खबर सामने आई, जब बीसीसीआई ने 17 अप्रैल को भारतीय टीम के सहायक कोच अभिषेक नायर का अनुबंध समाप्त कर दिया। यह निर्णय नायर की नियुक्ति के महज एक साल बाद आया है।

यह कदम बीसीसीआई की समीक्षा बैठक के बाद उठाया गया, जो इस वर्ष की शुरुआत में भारत के ऑस्ट्रेलिया दौरे की निराशाजनक प्रदर्शन के बाद हुई थी। इस दौरे में भारत की टीम ने उम्मीदों के मुताबिक प्रदर्शन नहीं किया, और यही वजह थी कि कोचिंग स्टाफ में बदलाव की बात की गई।

गौतम गंभीर की भूमिका और नायर की नियुक्ति

अभिषेक नायर को भारतीय क्रिकेट टीम के सहायक कोच के रूप में नियुक्त करने का निर्णय पूर्व मुख्य कोच गौतम गंभीर द्वारा लिया गया था, जिन्होंने जुलाई 2024 में नायर को अपनी टीम में शामिल किया था। नायर को घरेलू क्रिकेट में उनके विशाल अनुभव और भारतीय क्रिकेट की गहरी समझ के कारण चुना गया था। उनकी नियुक्ति को एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा गया था, क्योंकि उनका मानना था कि नायर मध्यक्रम के बल्लेबाजों के लिए एक अच्छा मार्गदर्शन दे सकते थे और टीम में एक ताजगी ला सकते थे।

लेकिन, इस नियुक्ति के बावजूद नायर की बर्खास्तगी ने कई लोगों को चौंका दिया। उनका कार्यकाल सिर्फ एक साल का ही रहा, और अब जब भारतीय टीम इंग्लैंड के महत्वपूर्ण टेस्ट दौरे की तैयारी कर रही है, बीसीसीआई ने नायर को हटाकर टीम को पुनर्जीवित करने की कोशिश की है।

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समय और प्रभाव

बीसीसीआई का यह निर्णय उस समय आया है जब भारत को इंग्लैंड के खिलाफ एक महत्वपूर्ण टेस्ट श्रृंखला खेलनी है। यह समय और परिस्थितियाँ भारतीय क्रिकेट के लिए नाजुक हैं, और कोचिंग स्टाफ में बदलाव से टीम को सही दिशा में ले जाने की उम्मीद जताई जा रही है। हालांकि, यह निर्णय कुछ सवाल भी खड़े करता है। जब टीम एक नए कोचिंग स्टाफ के साथ बड़े बदलावों से गुजर रही हो, तो क्या यह सही समय था एक और बदलाव करने का?

नायर का अचानक हटाया जाना और उनके कार्यकाल का इतना छोटा होना यह दर्शाता है कि भारत में कोचिंग स्टाफ को स्थिरता की कमी है। एक साल में ही कोच को बदलना टीम की तैयारी में गड़बड़ी पैदा कर सकता है, खासकर जब एक अहम टेस्ट श्रृंखला सामने हो।

नायर की बर्खास्तगी: क्या यह उचित था?

अभिषेक नायर की बर्खास्तगी को कई दृष्टिकोणों से दुर्भाग्यपूर्ण और गलत भी माना जा सकता है। पहली बात, उन्हें बहुत कम समय दिया गया था। कोचिंग एक जटिल प्रक्रिया है, और एक कोच को अपनी रणनीतियों को लागू करने और टीम के साथ तालमेल बैठाने में समय लगता है। एक साल का कार्यकाल यह आंकलन करने के लिए अपर्याप्त हो सकता है कि एक कोच का प्रभाव क्या है।

दूसरी बात, अगर भारत के प्रदर्शन को लेकर नायर को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, तो यह थोड़ा पक्षपाती प्रतीत हो सकता है। क्रिकेट एक टीम खेल है, और किसी भी मैच या श्रृंखला के परिणाम के लिए सिर्फ एक व्यक्ति को दोष देना उचित नहीं है।

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इसके अलावा, नायर को अपने कार्यकाल के दौरान अन्य सहायक कोचों और प्रमुख कोच के साथ काम करने का समय नहीं मिला, जिससे उनके प्रयासों को पूरा परिणाम मिलने का मौका नहीं मिला। कोचिंग स्टाफ के बीच समन्वय और तालमेल बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, और जब पूरी टीम अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाती, तो जिम्मेदारी केवल एक व्यक्ति पर डालना सही नहीं होता।

भविष्य में क्या हो सकता है?

बीसीसीआई की इस बर्खास्तगी के बाद, भारतीय क्रिकेट टीम के लिए अब एक नए सहायक कोच की आवश्यकता होगी, जो टीम के लिए तत्कालीन स्थिति को समझे और अगले टेस्ट दौरे के लिए तैयार कर सके। इसके अलावा, यह भी सवाल उठता है कि क्या यह बदलाव टीम के मानसिकता और सामूहिक प्रयासों को प्रभावित करेगा।

बीसीसीआई का यह कदम बदलाव की इच्छा से प्रेरित प्रतीत होता है, लेकिन यह भी देखना होगा कि क्या यह बदलाव भारत की टेस्ट क्रिकेट को बेहतर बनाने में मदद करता है या फिर यह निराशा का कारण बनता है।

 

अभिषेक नायर की बर्खास्तगी से यह सवाल उठता है कि क्या भारतीय क्रिकेट टीम में इस तरह के निरंतर बदलाव से स्थिरता बनाए रखना संभव होगा। टीम के प्रदर्शन के आधार पर निर्णय लेना समझदारी हो सकता है, लेकिन एक कोच को इतना कम समय देना और उसे केवल एक दौरे के आधार पर आंकना उचित नहीं लगता। यह देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में भारतीय क्रिकेट के लिए यह निर्णय किस हद तक सही साबित होता है।

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