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यह रही आपकी डॉक्यूमेंट्री के लिए Voice Over (VO) स्क्रिप्ट। इसे एक भारी और गंभीर आवाज़ (Baritone Voice) में रिकॉर्ड किया जाना चाहिए, जिसमें उतार-चढ़ाव और ठहराव (Pauses) का सही इस्तेमाल हो।
डॉक्यूमेंट्री टाइटल: एक शांत तूफ़ान – विष्णु देव साय
[INTRO – 10 दिसंबर 2023 का दृश्य]
(गहरी और रहस्यमयी आवाज़ में)
राजनीति… यहाँ शोर सबसे ज्यादा बिकता है। रैलियों की दहाड़, वादों का तूफ़ान और आरोपों का बाज़ार। लेकिन इतिहास गवाह है, सत्ता के सबसे बड़े फैसले कभी शोर में नहीं लिए जाते। वो फैसले लिए जाते हैं… सन्नाटे में।
10 दिसंबर, 2023। रायपुर। सूरज सिर पर था, लेकिन सियासी गलियारों में घना कोहरा छाया हुआ था। 15 साल तक राज करने वाले रमन सिंह? या कोई नया चेहरा? दिल्ली से आए उस एक बंद लिफाफे में किसकी तकदीर कैद थी?
घड़ी की हर टिक-टिक के साथ धड़कनें तेज़ हो रही थीं। उस कमरे में बैठे हर दिग्गज नेता के माथे पर पसीना था। सिवाय एक शख्स के। भीड़ के पीछे, खामोशी ओढ़े बैठा वो इंसान… जिसे शायद पता था कि आज का सूरज, उसी के नाम के साथ डूबेगा।
यह कहानी उसी खामोशी की है। यह कहानी है उस तूफ़ान की, जिसे किसी ने आते हुए नहीं देखा।
[PART 1 – जड़ें और संघर्ष (जशपुर के जंगल)]
(आवाज़ में थोड़ा अपनापन और भावुकता)
अगर आप नक्शे पर जशपुर को ढूंढेंगे, तो आपको जंगल मिलेंगे, पहाड़ मिलेंगे। लेकिन अगर आप जशपुर की रूह को ढूंढेंगे, तो आपको वहां का संघर्ष मिलेगा।
ये वो दौर था जब यहाँ सड़कें बाद में पहुंचीं, और मुसीबतें पहले। इसी बीहड़, और कुदरत की गोद में बसे ‘बगिया’ गाँव में, एक साधारण किसान के घर, एक लड़के का बचपन आकार ले रहा था।
विष्णु…। नाम में पालनहार का अक्स था, लेकिन जीवन एक तपस्या से कम नहीं था। हाथों में राजनीति की लकीरें नहीं, बल्कि खेतों की मिट्टी थी। किसने सोचा था, कि मिट्टी सानने वाले ये हाथ, एक दिन पूरे प्रदेश की तकदीर लिखेंगे?
लेकिन नियति अपना खेल, शतरंज की बिसात बिछाने से बहुत पहले शुरू कर देती है।
[PART 2 – गुरु और दीक्षा (दिलीप सिंह जूदेव का दौर)]
(आवाज़ में जोश और भारीपन)
हर अर्जुन को एक द्रोणाचार्य की ज़रूरत होती है। और जशपुर के इस अर्जुन को मिले… कुमार दिलीप सिंह जूदेव।
वो नाम, जिसकी मूंछों के ताव से दिल्ली की सत्ता भी कांपती थी। 90 का वो दशक, जब जशपुर सुलग रहा था। धर्मांतरण और संस्कृति की लड़ाई सड़कों पर थी। उस आग के बीच, विष्णु देव साय ने राजनीति का पहला पाठ पढ़ा।
जूदेव ने उन्हें सिखाया कि राजनीति सिर्फ भाषण देना नहीं है, राजनीति है… जड़ों से जुड़े रहना। एक तरफ जूदेव की आक्रामकता थी, और दूसरी तरफ विष्णु की सौम्यता। वो जूदेव की परछाई बन गए।
सांसद बने, केंद्र में मंत्री बने, दिल्ली के वातानुकूलित कमरों तक पहुंचे। लेकिन उनके पाँव, हमेशा जशपुर की धूल में सने रहे। वो सीढ़ियां चढ़ते गए, इतनी खामोशी से… कि किसी को उनके कदमों की आहट तक सुनाई नहीं दी।
[PART 3 – अन्धकार और परीक्षा (2018-2022)]
(आवाज़ धीमी, गंभीर और थोड़ी उदास)
लेकिन, वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता। 2018… वो साल जब भाजपा का अभेद्य किला ढह गया। 15 साल की सत्ता, ताश के पत्तों की तरह बिखर गई।
हताशा के उस दौर में पार्टी ने कमान विष्णु देव साय को सौंपी। कांटों का ताज उनके सिर पर था। उन्होंने मलबे को हटाकर फिर से नींव रखनी शुरू ही की थी कि… 2022 में एक और झटका लगा।
उन्हें अध्यक्ष पद से हटा दिया गया।
राजनीति के पंडितों ने उनकी विदाई का लेख लिख दिया। लोग कहने लगे, “विष्णु देव साय का अध्याय समाप्त।” अपमान का घूंट कड़वा था। उनके अपने समर्थक गुस्से में थे, बगावत करना चाहते थे।
लेकिन उस वक्त, विष्णु देव साय ने वो किया, जो राजनीति में सबसे मुश्किल होता है। वो… चुप रहे। उन्होंने ज़हर पी लिया, लेकिन चेहरे पर शिकन तक नहीं आने दी। क्योंकि उन्हें पता था… शेर जब दो कदम पीछे हटता है, तो वो भागने के लिए नहीं… झपट्टा मारने के लिए होता है।
[PART 4 – वापसी और जीत (2023 चुनाव)]
(आवाज़ में तेज़ गति और सस्पेंस)
2023 का चुनाव। हर तरफ शोर था। लेकिन इस शोर के नीचे, एक ‘साइलेंट वेव’ चल रही थी। विष्णु देव साय ने बड़े मंचों से दहाड़ने के बजाय, आदिवासियों के घरों में रोटियां तोड़ीं। उन्होंने प्रचार नहीं किया, उन्होंने विश्वास जीता।
और फिर आया 3 दिसंबर। नतीजों का दिन।
एग्जिट पोल फेल हो गए। पंडितों की भविष्यवाणी गलत साबित हुई। कमल खिल चुका था। जीत तो मिल गई, लेकिन असली सस्पेंस अभी बाकी था।
एक हफ्ता। 168 घंटे। रायपुर से लेकर दिल्ली तक सिर्फ कयासों का बाज़ार गर्म था। रेणुका सिंह? गोमती साय? या फिर रमन सिंह की वापसी? हर घंटे एक नया नाम, हर पल एक नई अफवाह।
लेकिन विष्णु देव साय? वो अपने गाँव में पूजा कर रहे थे। क्या यह आत्मविश्वास था? या फिर… समर्पण?
[CLIMAX – फैसले की घड़ी]
(आवाज़ बहुत नाटकीय, तेज़ और कसी हुई)
10 दिसंबर। दोपहर के 2 बज रहे थे। भाजपा कार्यालय का हॉल खचाखच भरा था। पर्यवेक्षकों ने फाइल खोली।
माइक पर रमन सिंह आए। पूरा हॉल शांत। एक सुई गिरने की भी आवाज़ सुनी जा सकती थी। सबकी नज़रें उनके होठों पर थीं। और फिर… उन्होंने वो नाम पुकारा।
“विष्णु… देव… साय।”
(हल्का पॉज़/Pause)
एक पल के लिए सन्नाटा, और फिर तालियों की गड़गड़ाहट ने उस सन्नाटे को चीर दिया। जो कल तक भीड़ के पीछे थे, आज वो प्रदेश के सबसे आगे खड़े थे। एक आदिवासी बेटा, एक किसान, एक तपस्वी… आज राजा बन चुका था।
[OUTRO – समापन]
(आवाज़ में प्रेरणा और ठहराव)
विष्णु देव साय की कहानी सिर्फ एक कुर्सी तक पहुंचने की कहानी नहीं है। यह कहानी है सब्र की। यह सबूत है कि राजनीति में चिल्लाना ज़रूरी नहीं… ज़रूरी है टिके रहना।
आज छत्तीसगढ़ की कमान उन हाथों में है, जिन्होंने हल चलाया है, जिन्होंने गरीबी देखी है, और जिन्होंने अपमान को पचाकर जीत में बदला है।
इतिहास गवाह रहेगा… कि तूफ़ान के आने से पहले ही सन्नाटा होता है। और छत्तीसगढ़ का वो सन्नाटा… अब बोल पड़ा है।
(आवाज़ फेड आउट)