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Pataudi Trophy विवाद: Gavaskar ने ECB के फैसले पर उठाए कड़े सवाल, कहा Lack of Sensitivity साफ दिखता है

क्रिकेट जगत में उस समय एक नया विवाद खड़ा हो गया जब इंग्लैंड और वेल्स क्रिकेट बोर्ड यानी ईसीबी ने भारत और इंग्लैंड के बीच इंग्लैंड की धरती पर खेली जाने वाली टेस्ट श्रृंखला की विजेता टीम को दी जाने वाली प्रतिष्ठित पटौदी ट्रॉफी को रिटायर करने का फैसला किया। साल 2007 से चली आ रही इस परंपरा को समाप्त करने के ईसीबी के निर्णय की भारत के महान पूर्व कप्तान और क्रिकेट कमेंटेटर सुनील गावस्कर ने कड़ी आलोचना की है। गावस्कर ने इसे क्रिकेट में पटौदी परिवार के अमूल्य योगदान के प्रति घोर असंवेदनशीलता करार दिया है।

पटौदी ट्रॉफी का नामकरण भारत के पूर्व दिग्गज कप्तान नवाब मंसूर अली खान पटौदी के सम्मान में किया गया था। पटौदी परिवार का भारत और इंग्लैंड, दोनों देशों के क्रिकेट इतिहास से गहरा नाता रहा है। मंसूर अली खान के पिता, इफ्तिखार अली खान पटौदी, दुनिया के एकमात्र ऐसे क्रिकेटर हैं जिन्होंने इंग्लैंड और भारत दोनों के लिए टेस्ट क्रिकेट खेला है। यह ट्रॉफी केवल एक खेल सम्मान ही नहीं, बल्कि दोनों देशों के बीच लंबे क्रिकेट संबंधों और साझा विरासत का प्रतीक भी मानी जाती रही है।

75 वर्षीय सुनील गावस्कर ने ईसीबी के इस कदम पर अपनी निराशा और नाराजगी खुलकर जाहिर की। उन्होंने कहा कि यह खबर वास्तव में परेशान करने वाली है। गावस्कर का मानना है कि यह निर्णय पटौदी परिवार द्वारा दोनों देशों में क्रिकेट के विकास और प्रतिष्ठा के लिए किए गए महत्वपूर्ण योगदान को पूरी तरह से नजरअंदाज करता है। उन्होंने इसे न केवल पटौदी परिवार का अपमान बताया बल्कि उस भावना का भी निरादर माना जिसके तहत इस ट्रॉफी की शुरुआत की गई थी।

गावस्कर ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण बात भी कही। उन्होंने उम्मीद जताई कि अगर भविष्य में किसी भारतीय क्रिकेटर के नाम पर किसी ट्रॉफी का नाम रखने का प्रस्ताव आता है, तो वह खिलाड़ी विनम्रतापूर्वक इस सम्मान को अस्वीकार कर दे। गावस्कर का तर्क था कि ऐसा करके वह खिलाड़ी भविष्य में ऐसी स्थिति से बच सकेगा जहाँ उसके नाम से जुड़ी ट्रॉफी को भी इसी तरह अचानक अपमानजनक तरीके से रिटायर कर दिया जाए, जैसा कि पटौदी ट्रॉफी के साथ हो रहा है। यह टिप्पणी भविष्य में इस तरह के सम्मान स्वीकार करने वाले खिलाड़ियों के लिए एक चेतावनी के तौर पर भी देखी जा रही है।

उन्होंने जोर देकर कहा कि पटौदी परिवार का योगदान सिर्फ मैदान तक ही सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने खेल की गरिमा और दोनों देशों के बीच क्रिकेट के रिश्तों को मजबूत करने में भी अहम भूमिका निभाई थी। ईसीबी का यह फैसला कई क्रिकेट प्रेमियों और विशेषज्ञों को हैरान कर गया है, खासकर तब जब खेल में परंपराओं और इतिहास के सम्मान को काफी महत्व दिया जाता है।

फिलहाल, ईसीबी ने अपने इस फैसले के पीछे के कारणों का विस्तृत खुलासा नहीं किया है, लेकिन इस कदम ने भारत और इंग्लैंड के क्रिकेट संबंधों की गर्मजोशी पर निश्चित रूप से एक सवालिया निशान लगा दिया है। यह देखना अहम होगा कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी बीसीसीआई इस मामले पर क्या प्रतिक्रिया देता है और क्या वह इस मुद्दे को ईसीबी के समक्ष उठाएगा। क्रिकेट जगत में अब इस बात पर बहस छिड़ गई है कि क्या ऐतिहासिक महत्व की ट्रॉफियों को इस प्रकार समाप्त किया जाना खेल भावना के अनुरूप है।

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