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वीडियो स्क्रिप्ट: माँ नर्मदा – एक अमर विरह गाथा

वीडियो अवधि: लगभग 25 मिनट

शैली: भावनात्मक, पौराणिक कथा, वृत्तचित्र (Documentary)


(00:00 – 02:30) – प्रस्तावना: एक अनूठी नदी का रहस्य

(दृश्य): भारत का नक्शा, जिसमें अधिकांश नदियाँ (गंगा, गोदावरी, कृष्णा) पूर्व की ओर बहती हुई दिखाई देती हैं। फिर कैमरा नर्मदा पर ज़ूम करता है, जो विपरीत दिशा में बह रही है। ड्रोन से नर्मदा का विहंगम दृश्य, जो पहाड़ों को चीरती हुई पश्चिम की ओर जा रही है। संगीत रहस्यमयी और प्रश्नवाचक हो।

नरेटर (गंभीर और भावपूर्ण आवाज़ में):
“भारत की नदियाँ… केवल जलधाराएं नहीं, बल्कि इस देश की आत्मा हैं। वे जीवन देती हैं, सभ्यताएं गढ़ती हैं और अपने साथ सदियों की कहानियाँ लेकर बहती हैं। गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा… भारत की लगभग हर बड़ी नदी पूर्व की ओर बहकर बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाती है, मानो उगते सूर्य को अर्घ्य दे रही हो।

लेकिन… एक नदी ऐसी है जो इस नियम को नहीं मानती। जो प्रवाह के विरुद्ध बहती है। जो अपनी ही धुन में, अपने ही प्रण में, पूर्व से पश्चिम की ओर एक अविचल यात्रा करती है।

यह नदी है माँ नर्मदा… शिव की पुत्री, शांकरी।

क्यों? क्यों नर्मदा बाकी नदियों की तरह पूर्व की ओर नहीं जातीं? भूगोल इसका उत्तर भ्रंश घाटी (Rift Valley) में देता है, लेकिन हमारे पुराणों और लोककथाओं में इसका उत्तर एक ऐसी कहानी में छिपा है, जिसमें प्रेम है, विश्वासघात है, एक टूटा हुआ हृदय है और एक अमर संकल्प है।

आज हम आपको सुनाएंगे वही मार्मिक कथा… माँ नर्मदा के रेवा बनने की कहानी। उनके चिरकुंवारी रहने और पश्चिम की ओर बहने के पीछे छिपी एक अमर विरह गाथा।”

(दृश्य): टाइटल स्क्रीन – “माँ नर्मदा: एक अमर विरह गाथा”


(02:30 – 07:00) – प्रेम का आरंभ: नर्मदा और सोनभद्र

(दृश्य): अमरकंटक की अलौकिक सुंदरता। हरे-भरे पहाड़, झरने। एनीमेशन में राजकुमारी नर्मदा को एक दिव्य कन्या के रूप में और राजकुमार सोनभद्र को एक तेजस्वी नद (पुरुष नदी) के रूप में दिखाया जाए। दोनों के बीच प्रेम के दृश्य, जैसे फूलों के बाग में मिलना, एक-दूसरे को निहारना। संगीत मधुर और रोमांटिक हो।

नरेटर:
“कहानी शुरू होती है अमरकंटक की उन्हीं पवित्र पहाड़ियों से, जहाँ शिव-पुत्री नर्मदा का प्राकट्य हुआ था। नर्मदा अब विवाह योग्य हो चुकी थीं। उनका सौंदर्य और तेज त्रिलोक में प्रसिद्ध था। उनके लिए राजा सोनभद्र का संबंध आया, जो स्वयं एक तेजस्वी नद थे और अमरकंटक की पूर्वी ढलानों से निकलते थे।

नर्मदा और सोनभद्र का प्रेम पहली दृष्टि का प्रेम था। दोनों एक-दूसरे के दिव्य स्वरूप पर मोहित थे। उनका विवाह तय हो गया। पूरे देवलोक और भूलोक में उत्सव की तैयारियां होने लगीं। अमरकंटक के शिखर आनंद और मंगल गीतों से गूंज रहे थे। नर्मदा अपने भावी जीवन के सपने बुन रही थीं, सोनभद्र के प्रेम में पूरी तरह डूबी हुईं।”

(दृश्य): विवाह की तैयारियों के भव्य दृश्य। महल सजाए जा रहे हैं, संगीत बज रहा है। नर्मदा अपनी सखियों के साथ हैं, उनके चेहरे पर खुशी और लज्जा का भाव है।

नरेटर:
“विवाह का दिन निकट आ रहा था। प्रेम में व्याकुल राजकुमारी नर्मदा से और प्रतीक्षा नहीं हुई। उन्होंने अपने प्रेम का एक प्रतीक, एक अंतिम संदेश अपने होने वाले पति सोनभद्र तक पहुँचाने का निश्चय किया। इस कार्य के लिए उन्होंने अपनी सबसे प्रिय दासी, जोहिला को चुना।”


(07:00 – 13:00) – विश्वासघात की पटकथा

(दृश्य): नर्मदा अपनी दासी जोहिला को बुलाती हैं। जोहिला बहुत सुंदर है। नर्मदा उसे अपने वस्त्र और आभूषण पहनाती हैं। जोहिला उन वस्त्रों में खुद को आईने में देखती है और मोहित हो जाती है। संगीत में हल्का सा तनाव आने लगता है।

नरेटर:
“जोहिला, जो स्वयं एक छोटी नदी की आत्मा थी, अत्यंत रूपवती थी। नर्मदा अपनी दासी पर इतना विश्वास करती थीं कि उन्होंने प्रेम के इस गुप्त संदेश के लिए उसे चुना। उन्होंने जोहिला को अपने सबसे सुंदर वस्त्र और आभूषण पहनाए, ताकि सोनभद्र के महल में उसका यथोचित सम्मान हो।

लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। राजकुमारी के वस्त्र और आभूषण पहनकर जोहिला का रूप और भी निखर उठा। जब उसने दर्पण में अपना प्रतिबिंब देखा, तो एक क्षण के लिए उसके मन में ईर्ष्या और अभिमान का भाव जाग गया।

वह नर्मदा का संदेश लेकर सोनभद्र के शिविर की ओर चल पड़ी। जब वह वहाँ पहुँची, तो सोनभद्र, जो बेसब्री से नर्मदा की प्रतीक्षा कर रहे थे, जोहिला को राजकुमारी के वेश में देखकर उसे ही नर्मदा समझ बैठे। वे जोहिला के सौंदर्य पर मोहित हो गए।”

(दृश्य): सोनभद्र जोहिला को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। जोहिला भी सोनभद्र के आकर्षण में बंध जाती है। वह सच नहीं बताती। दोनों बातें करने लगते हैं।

नरेटर:
“सोनभद्र ने उससे पूछा, ‘हे प्रिय नर्मदे, तुम स्वयं चली आईं?’

यह वो क्षण था, जहाँ जोहिला को सत्य बताना था। लेकिन सोनभद्र का आकर्षण और राजकुमारी कहलाए जाने का सुख उस पर हावी हो गया। उसने नर्मदा के साथ विश्वासघात किया। उसने अपना परिचय नहीं दिया और सोनभद्र के प्रेम निवेदन को स्वीकार कर लिया।”


(13:00 – 19:00) – टूटा हुआ हृदय और प्रचंड क्रोध

(दृश्य): नर्मदा अपने महल में चिंतित होकर टहल रही हैं। काफी समय बीत चुका है। वह स्वयं सोनभद्र से मिलने निकल पड़ती हैं। उनके कदमों में व्याकुलता है। संगीत धीमा और चिंताजनक हो जाता है।

नरेटर:
“उधर, नर्मदा के महल में समय बीतता जा रहा था। जब घंटों तक जोहिला लौटकर नहीं आई, तो नर्मदा का मन अनहोनी की आशंका से कांप उठा। उन्हें लगा कि शायद उनकी दासी किसी संकट में फंस गई है। अपनी चिंता को और न रोक पाकर, वे स्वयं सोनभद्र से मिलने के लिए चल पड़ीं।

जैसे-जैसे वे सोनभद्र के शिविर के निकट पहुँच रही थीं, उनका हृदय और तेज धड़क रहा था। और फिर… उन्होंने वो दृश्य देखा, जिसने उनके पैरों तले की धरती खिसका दी।”

(दृश्य): नर्मदा छिपकर देखती हैं कि जोहिला, सोनभद्र की बाहों में है। नर्मदा की आँखों में पहले अविश्वास, फिर पीड़ा और अंत में क्रोध की ज्वाला धधक उठती है। संगीत एकदम से नाटकीय और दर्दनाक हो जाता है।

नरेटर (आवाज़ में पीड़ा और क्रोध भरकर):
“उनकी अपनी दासी… जिसे उन्होंने अपनी बहन से बढ़कर माना, वही उनके प्रेम, उनके सोनभद्र की बाहों में थी। प्रेम में मिले इस विश्वासघात ने नर्मदा के हृदय के करोड़ों टुकड़े कर दिए। उनका प्रेम, उनकी कोमलता, उनकी सारी भावनाएं एक पल में प्रचंड क्रोध और घोर वेदना में बदल गईं।

उन्होंने उसी क्षण संकल्प लिया… एक ऐसा संकल्प जिसने भूगोल और इतिहास, दोनों को बदल दिया। उन्होंने प्रतिज्ञा की कि वह आजीवन कुंवारी रहेंगी और आज के बाद कभी इस विश्वासघाती सोनभद्र का मुख नहीं देखेंगी।”

(दृश्य): नर्मदा क्रोध में अपनी एड़ी से धरती पर प्रहार करती हैं। चट्टानें टूटती हैं। वह तेजी से मुड़ती हैं और विपरीत दिशा में बहना शुरू कर देती हैं। उनके प्रवाह में प्रचंड वेग और क्रोध है।

नरेटर:
“क्रोध और अपमान की अग्नि में जलती हुई नर्मदा उसी स्थान से उलटे पाँव मुड़ीं और सोनभद्र से हमेशा के लिए दूर, पश्चिम दिशा की ओर तीव्र गति से बहने लगीं। उन्होंने प्रण किया कि वह कभी पीछे मुड़कर नहीं देखेंगी। उनका प्रवाह इतना तेज था कि रास्ते में आने वाले बड़े-बड़े पर्वत और चट्टानें भी उनके मार्ग को रोक न सकीं।”


(19:00 – 25:00) – ‘रेवा’ की पुकार और अंतिम विदाई

(दृश्य): सोनभद्र को अपनी भूल का अहसास होता है। वह नर्मदा के पीछे भागता है, लेकिन नर्मदा बहुत दूर जा चुकी होती हैं। वह ऊँची चट्टान पर खड़े होकर नर्मदा को पुकारता है।

नरेटर:
“जब कोलाहल सुनकर सोनभद्र को अपनी भूल का अहसास हुआ, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। वह नर्मदा के पीछे दौड़े, उन्हें रोकने की, अपनी गलती की क्षमा मांगने की बहुत कोशिश की। वह पहाड़ों की चोटियों से चिल्लाते रहे… ‘रेवा… रेवा… रुको! लौट आओ रेवा!’

‘रेवा’ का अर्थ है – ‘विद्रोही’ या ‘उछल-कूद कर चलने वाली’। सोनभद्र की यही दर्द भरी पुकार नर्मदा का दूसरा नाम बन गई, लेकिन नर्मदा नहीं रुकीं। उन्होंने अपना प्रण नहीं तोड़ा।”

(दृश्य): नर्मदा तीव्र वेग से पश्चिम की ओर बहती जा रही हैं। दूसरी ओर, सोनभद्र निराश होकर पूर्व की ओर बह जाता है और आगे गंगा में मिल जाता है। जोहिला भी सोन नदी में विलीन हो जाती है। अंत में, नर्मदा अरब सागर में मिलती हुई दिखाई देती हैं।

नरेटर (शांत और दार्शनिक स्वर में):
“और इस तरह, प्रेम की यह कहानी अधूरी रह गई। सोनभद्र अपने पश्चाताप के साथ पूर्व की ओर बह गए और पटना के पास गंगा में मिल गए। विश्वासघाती जोहिला भी आगे जाकर सोन नदी में ही विलीन हो गई, मानो अपनी गलती की सज़ा भुगत रही हो।

और माँ नर्मदा… अपने टूटे हुए हृदय और अटूट संकल्प के साथ, आज भी पश्चिम की ओर बहती हुई गुजरात के पास खंभात की खाड़ी में, अरब सागर में विलीन हो जाती हैं।

उनका यह विपरीत प्रवाह केवल एक भौगोलिक घटना नहीं, बल्कि उनके स्वाभिमान, उनकी पवित्रता और उस धोखे का प्रतीक है, जिसे वह आज तक नहीं भूली हैं। वह हमें सिखाती हैं कि जब हृदय टूटता है, तो व्यक्ति या तो बिखर जाता है, या फिर अपना एक नया, शक्तिशाली मार्ग बना लेता है। माँ नर्मदा ने अपना मार्ग बनाया… और अमर हो गईं।”

(दृश्य): नर्मदा के शांत और सुंदर घाट। आरती का दृश्य। श्रद्धालुओं के चेहरे पर शांति।

नरेटर:
“आज भी, जब कोई नर्मदा के किनारे खड़ा होता है, तो उसे उनके जल के प्रवाह में एक गति, एक प्रण और एक अनकही कहानी महसूस होती है। वह चिरकुंवारी हैं, इसीलिए परम पवित्र हैं। वह शिव-पुत्री हैं, इसीलिए मोक्षदायिनी हैं।”

(अंतिम संगीत और ‘नर्मदे हर’ के जाप के साथ समाप्त)

नर्मदे हर!

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