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ज़रूर, मैं आपकी मदद करूंगा। यहाँ एक नई कहानी है, उसी नाटकीय और वायरल अंदाज़ में, जैसा आपने कहा:

[संगीत]
एक छोटे से गांव में, जहाँ गरीबी का साया हर घर पर मंडरा रहा था, एक जवान लड़का रहता था, जिसका नाम था राजू। राजू का सपना था कि वो अपने परिवार को इस गरीबी से बाहर निकाले। वो दिन-रात मेहनत करता, पर हर बार उसकी मेहनत का फल उसे मिलता नहीं था। एक दिन उसने तय किया कि अब उसे गांव छोड़कर शहर जाना होगा, जहाँ वो अपनी किस्मत आज़मा सके।

राजू अपने घर से निकल पड़ता है, उसकी आंखों में उम्मीद और दिल में थोड़ी घबराहट थी। चलते-चलते वो बड़े शहर की गलियों में आ जाता है। शहर की चकाचौंध उसे हैरान कर देती है, पर उसे जल्द ही एहसास होता है कि यहाँ भी ज़िन्दगी आसान नहीं है। उसे कोई काम नहीं मिलता, और रात गुज़ारने के लिए भी कोई ठिकाना नहीं।

एक दिन भूख और थकान से चूर, राजू एक बड़े सेठ, धनराज के महलनुमा घर के सामने पहुँचता है। उसकी हालत देखकर सेठ धनराज का माली उसे अंदर ले जाता है।
“सेठ जी, मैं राजू हूँ। गांव से आया हूँ। हमारे गांव में कुछ भी नहीं बचा। अगर मुझे आपके पास कोई काम मिल जाए तो मैं आपका आभारी रहूँगा,” राजू हाथ जोड़कर कहता है।
धनराज सेठ उसे ऊपर से नीचे तक देखता है। “तुम्हारी हालत तो बड़ी खराब दिख रही है। ठीक है, मेरे पास एक काम है, पर मुझे नहीं लगता तुम वो कर पाओगे,” सेठ कहता है।
“सेठ जी, आप चिंता न करें। मैं कोई भी काम कर सकता हूँ, पूरी मेहनत और ईमानदारी से,” राजू में आत्मविश्वास झलक रहा था।
“अच्छा ठीक है, राजू। तो सुनो,” सेठ कहता है। “मेरे पास एक बहुत बड़ा बगीचा है, जिसमें सैकड़ों किस्म के फूल और पेड़-पौधे हैं। तुम्हें हर रोज़ सुबह-शाम इन पौधों को पानी देना होगा, उनकी निराई-गुड़ाई करनी होगी और बगीचे को साफ रखना होगा। महीने के आखिर में तुम्हें ₹300 मिलेंगे और दो वक्त का खाना भी हमारी तरफ से मुफ्त मिलेगा। बोलो, क्या तुम ये काम कर पाओगे?”
राजू सोचता है, ‘अरे बाप रे, इतना बड़ा बगीचा! ये तो बहुत मुश्किल काम है।’ पर फिर उसे अपनी गरीबी याद आती है। “ठीक है, सेठ जी! मैं ये काम करूँगा।”
“पर एक विनती है,” राजू कहता है।
“हाँ बोलो राजू, क्या बात है?” सेठ पूछता है।
“सेठ जी, अगर आपको परेशानी न हो, तो क्या मैं बगीचे के छोटे से कमरे में रह सकता हूँ? मेरे पास रहने का कोई ठिकाना नहीं है,” राजू कहता है।
धनराज सेठ थोड़ी देर सोचता है और फिर मुस्कुराते हुए कहता है, “ठीक है राजू, तुम रह सकते हो।”
“जी धन्यवाद सेठ जी,” राजू कहता है।

तब से राजू बगीचे में रहकर अपना काम करने लगता है। वह रोज़ सुबह जल्दी उठकर पौधों को पानी देता, उनकी देखभाल करता और पूरे बगीचे को साफ-सुथरा रखता। वह अपना काम पूरी ईमानदारी और लगन से करता था। धनराज सेठ को भी राजू का काम बहुत पसंद आने लगा, क्योंकि उसका बगीचा पहले से कहीं ज़्यादा सुंदर दिखने लगा था।

एक दिन धनराज सेठ राजू को बुलाता है। “राजू, मुझे तुम्हारा काम बहुत पसंद आया है। तुमने मेरे बगीचे को स्वर्ग बना दिया है। इसलिए आज से मैं तुम्हारी तनख्वाह बढ़ाकर पूरे ₹600 कर रहा हूँ।”
“आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सेठ जी,” राजू खुश होकर कहता है।

कुछ दिन ऐसे ही बीतते हैं। राजू धनराज सेठ के यहाँ बहुत मेहनत और ईमानदारी से काम करता है। धीरे-धीरे राजू के पास अच्छे-खासे पैसे जमा हो जाते हैं। अब उसे बगीचे में रहने की ज़रूरत नहीं पड़ती। उसने शहर में एक छोटा सा कमरा किराए पर ले लिया था।
‘बगीचे में सोते-सोते तो फूलों की खुशबू अब दिमाग में बस गई है। अब आखिरकार मुझे अपने घर में चैन से सोने को मिलेगा,’ राजू सोचता है।
तब से राजू धनराज सेठ के पास काम करने आता और दो वक्त का खाना खाकर अपने घर सोने चला जाता था। कई साल ऐसे ही बीत जाते हैं। राजू की मेहनत के कारण उसके पास अच्छा खासा रुपया जमा हो जाता है।

एक दिन राजू धनराज सेठ से कहता है, “सेठ जी, आजकल शहर में चोरियां बहुत बढ़ गई हैं। मेरे पास कुछ पैसे जमा हैं जो मैंने अपने कमरे में रखे हुए हैं। मुझे उन पैसों की चोरी की चिंता हो रही है। आपको तो पता है कि मैं दिन भर आपके पास ही काम करता हूँ और सिर्फ रात में ही घर सोने जाता हूँ।”
“हाँ राजू, तुम बिल्कुल सही कह रहे हो। आए दिन शहर में नए-नए चोरी के किस्से सामने आ रहे हैं और दिन भर तो तुम्हारा घर खाली ही रहता है, तो चोरी होने की संभावना तो ज़रूर है,” सेठ धनराज कहता है।
धनराज सेठ थोड़ी देर सोचता है और फिर राजू से कहता है, “देखो राजू, ऐसे समय में तो शहर में एक ही जगह है जहाँ पर तुम्हारा धन सुरक्षित रह सकता है और वो है शहर के सबसे बड़े व्यापारी, धर्मपाल जी का घर।”
“क्या, धर्मपाल जी का घर?” राजू चौंकता है।
“हाँ राजू, इस शहर के व्यापारी धर्मपाल जी बहुत ईमानदार और दयालु हैं। ऐसा मैंने कुछ लोगों से सुना है और उनके घर पर बहुत सारे पहरेदार भी हैं। तो चोरी होने की संभावना बहुत कम है। तुम अपने पैसे उनके पास रख सकते हो,” सेठ धनराज समझाता है।
“अच्छा ऐसा है क्या सेठ जी? ठीक है, फिर आज ही मैं धर्मपाल जी से मिलकर बात करता हूँ और उन्हें अपनी समस्या बताता हूँ,” राजू कहता है।

उस दिन राजू धर्मपाल जी के घर उनसे बात करने जाता है।
“ए, रुको! कहाँ अंदर आए जा रहे हो? वहीं रुक जाओ,” एक पहरेदार कहता है।
“जी जी, मुझे धर्मपाल जी से मिलना है। मुझे उनसे कुछ काम है,” राजू कहता है।
“क्या काम है तुमको उनसे? मुझे ज़रा बताओ,” पहरेदार पूछता है।
“जी, मुझे कुछ पैसे रखवाने थे उनके पास। यही काम के लिए आया था मैं,” राजू बताता है।
“अच्छा, ठीक है। तुम अंदर जा सकते हो,” पहरेदार कहता है।

“नमस्ते धर्मपाल जी, मैं राजू हूँ। धनराज सेठ के यहाँ काम करता हूँ। कुछ साल पहले ही मैं गांव से यहाँ आया हूँ,” राजू कहता है।
“अच्छा राजू, बोलो तुम्हारा क्या काम है मेरे पास?” धर्मपाल जी पूछते हैं।
“धर्मपाल जी, मैं सालों से धनराज सेठ के पास काम कर रहा हूँ और मैंने कुछ रुपए भी जमा कर लिए हैं। पर बात यह है कि शहर में चोरी की समस्या बहुत बढ़ गई है। तो मुझे अपने रुपए घर में रखने से डर लग रहा है,” राजू कहता है।
“अच्छा, कितने रुपए जमा किए हैं तुमने?” धर्मपाल जी पूछते हैं।
“धर्मपाल जी, यही कोई ₹10,000 होंगे मेरे पास,” राजू बताता है।
“वाह, यह तो बड़ी रकम है! मैंने आपकी ईमानदारी के बारे में लोगों से बहुत सुना है। इसलिए मैं अपनी रकम आपके पास कुछ वक़्त के लिए रखने आया हूँ,” राजू कहता है।
“हाँ राजू, तुमने बिल्कुल सही सुना है। तुम्हारी रकम मेरे पास पूरी तरह से सुरक्षित रहेगी। तुम अब चिंता ही छोड़ दो। मैं सब देख लूँगा,” धर्मपाल जी कहते हैं।
राजू अपने पैसों की थैली धर्मपाल जी को दे देता है। “ये पूरे ₹10,000 हैं। आप गिन कर देख लीजिए।”
“गिनने की क्या ज़रूरत है? तुम तो धनराज सेठ के आदमी हो। मुझे तुम पर पूरा विश्वास है,” धर्मपाल जी कहते हैं।
“धर्मपाल जी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। अब मुझे चोरों का कोई डर नहीं है, क्योंकि मेरे पैसे सुरक्षित हाथों में हैं,” राजू कहता है।
“अरे राजू, कोई बात नहीं। धन्यवाद तो मुझे बोलना चाहिए जो तुम मेरे पास आए अपने रुपए रखने के लिए,” धर्मपाल जी कहते हैं।
राजू अपने पैसे धर्मपाल जी को देकर अपने घर चला जाता है।
‘हाँ राजू, तुम्हारे पैसे मेरे हाथों में ही अच्छे लगते हैं,’ धर्मपाल जी मन ही मन सोचते हैं।

ऐसे ही राजू ईमानदारी और मेहनत से धनराज सेठ के यहाँ काम कर रहा था। देखते ही देखते 2 साल ऐसे ही बीत जाते हैं।
एक दिन राजू सोचता है, ‘अब बहुत साल हो गए धनराज सेठ के यहाँ काम करते हुए। वैसे सेठ जी तो बहुत अच्छे इंसान हैं। पर सोच रहा हूँ कि खुद का छोटा सा कारोबार शुरू करूँ। तभी मैं बड़ा आदमी बन सकता हूँ। अब जो मेरे पास थोड़े कुछ पैसे हैं और जो धर्मपाल जी के पास कुछ पैसे संभालने के लिए दिए हैं, वह जमा करके अपनी दुकान खोलूँगा। आज ही धर्मपाल जी से मिलने जाता हूँ और अपने रुपए मांगता हूँ।’
यह सोचकर राजू धर्मपाल जी के घर चला जाता है।
“धर्मपाल जी, मैं अपने रुपए वापस लेने आया हूँ। आपके पास मैंने ₹10,000 दिए थे संभालने के लिए।”
“अरे भाई साहब, मैंने पहचाना नहीं आपको। वैसे कौन हो आप?” धर्मपाल जी हैरानी से कहते हैं।
“अरे धर्मपाल जी, मैं राजू हूँ। पिछले साल मैंने आपको पैसे संभालने के लिए दिए थे। याद आया कुछ?” राजू पूछता है।
“अरे भाई साहब, मेरे पास कितने सारे लोग आते जाते हैं पैसे रखने के लिए और सभी के साथ मेरा अच्छा व्यवहार होता है। वैसे आपके पास कोई कागजात हैं क्या? क्योंकि मैं हर व्यक्ति से कागज पर ही व्यवहार करता हूँ। किसने कितने पैसे दिए, किसके कितने पैसे रखे हैं? सबका व्यवहार रहता है मेरे पास,” धर्मपाल जी चालाकी से कहते हैं।
“धर्मपाल जी, यह आप क्या बात कर रहे हैं? आपकी ईमानदारी देखकर ही मैंने आपको पैसे दिए थे संभालने के लिए और आप अब ऐसी बातें कर रहे हैं। कृपया करके मेरे पैसे मुझे वापस कीजिए,” राजू गिड़गिड़ाता है।
“हाँ राजू, मैं ईमानदारी से ही काम करता हूँ। इसलिए तो तुमसे मैं डॉक्यूमेंट्स मांग रहा हूँ। क्या तुम्हें पता नहीं जब तुम किसी से पैसों का व्यवहार करते हो तो तुम्हें स्टैंप पेपर पर लिखकर देना पड़ता है? तुम किसी से भी पूछ सकते हो,” धर्मपाल जी कहते हैं।
“नहीं धर्मपाल जी, मैं आपके पैर पड़ता हूँ। कृपया करके मेरे रुपए मुझे दे दीजिए। बड़ी मेहनत से मैंने वो पैसे जमा किए थे। मुझ पर ऐसा अन्याय न करें,” राजू फूट-फूटकर रोता है।
“अरे क्या यह झूठ-मूठ का रोना धोना लगाया है? लगता है तुम ढोंगी हो और मेरी ईमानदारी और भोलेपन का फायदा उठाकर मुझसे यह रुपए लेने आए हो। रुक, तुझे अभी सबक सिखाता हूँ!” धर्मपाल जी गुस्से में कहते हैं।
धर्मपाल जी अपने आदमियों को बुलाकर राजू की पिटाई करने को कहते हैं। “इसे तब तक मारो जब तक यह बेहोश न हो जाए। इस दो कौड़ी के आदमी ने मेरी ईमानदारी पर सवाल उठाया है। इसे छोड़ना मत!”
धर्मपाल के आदमी राजू को डंडे से खूब मारते हैं। फिर राजू दुखी होकर अपने घर चला जाता है। राजू के शरीर पर घाव के निशान स्पष्ट दिखाई दे रहे थे।

दो दिन से राजू घाव के दर्द के कारण धनराज सेठ के घर काम के लिए नहीं जा पाता है। इसलिए अगले दिन धनराज सेठ राजू के पास आ जाते हैं। वह देखते हैं कि राजू खाट पर सो रहा है और वह बड़ा ही चिंता में नज़र आ रहा है।
“राजू भाई, तुम दो दिन काम पर नहीं आए। क्या हुआ भाई? तबीयत ठीक है ना तुम्हारी? कुछ समस्या है क्या?” धनराज सेठ पूछते हैं।
“अरे सेठ जी, आप खुद यहाँ आए हो। आप खबर भिजवाते तो मैं खुद चला आता,” राजू कहता है।
“अरे राजू, कोई बात नहीं। तुम्हें देखकर लगता है तुम बीमार हो। क्या हुआ है तुम्हें?” धनराज सेठ पूछते हैं।
“सेठ जी, क्या बताऊँ? जिस धर्मपाल जी के पास पिछले साल मैंने अपने पैसे संभालने को दिए थे, वो आज मुझे पैसे वापस नहीं करना चाहता। वो बहुत लालची इंसान है। वो लोगों को ठग रहा है। और जब मैंने बाद में गिड़गिड़ाना शुरू किया तो उसने डंडे से मार-मार कर मेरी पिटाई करवा दी और मुझे वहाँ से धक्के मार कर निकाल दिया,” राजू रोते हुए बताता है।
“अरे बाप रे, ये तो बड़ा ही गंभीर विषय है। मैंने तो धर्मपाल जी के बारे में अच्छा ही सुना था। पर मुझे भी नहीं पता था कि वो इंसान इतना गिरा हुआ है। तभी मैं सोचूँ हर साल उसकी संपत्ति इतनी ज़्यादा कैसे बढ़ रही है! मुझे माफ कर दो राजू। मैंने ही तुम्हें धर्मपाल जी के पास जाने को बोला था। गलती तो मेरी भी है,” धनराज सेठ पछताते हुए कहते हैं।
“नहीं धनराज सेठ, आप तो मेरा अच्छा ही सोच रहे थे। यह तो उस धर्मपाल का लालच है। अब लगता नहीं मेरे पैसे उस धर्मपाल से वापस मिलेंगे भी,” राजू उदास होकर कहता है।
“राजू, मेरे पास एक तरकीब है जिससे मैं तुम्हारे पैसे तुम्हें वापस दिला सकता हूँ,” धनराज सेठ मुस्कुराते हुए कहते हैं।
धनराज सेठ राजू के कान में सारी तरकीब बताता है।
“ठीक है सेठ जी। हे ऊपर वाले, यह तरकीब कामयाब होने दीजिए,” राजू उम्मीद से कहता है।

अगले दिन धनराज सेठ बहुत सारे पैसों को एक सूटकेस में भरकर खुद धर्मपाल जी के घर जाते हैं।
“अरे धनराज सेठ, आप आज आप खुद यहाँ! बोलो भाई, इस गरीब के घर कैसे आना हुआ? हमारा तो यह सौभाग्य है कि आप जैसे धनी आदमी के चरण हमारे घर में लगे हैं,” धर्मपाल जी चालाकी से कहते हैं।
“नमस्ते धर्मपाल जी। अरे धर्मपाल जी, आप तो मुझे अब लज्जित कर रहे हैं। वैसे मैं कुछ महीनों के लिए दूसरे शहर में व्यापार करने जा रहा हूँ। मैं यह लगभग ₹50,000 लाया हूँ। मुझे डर है कि कहीं यह चोरी न हो जाए। क्या आप मेरे सारे पैसे अपने पास संभाल कर रख सकते हैं? आपके सिवाय इस शहर में और किसी पर भरोसा नहीं कर सकता,” धनराज सेठ कहते हैं।
“अरे धनराज सेठ, यह भी कोई पूछने की बात है? मेरे पास आपके पैसे बिल्कुल सुरक्षित रहेंगे। आप निश्चित होकर व्यापार करने जा सकते हैं,” धर्मपाल जी मन ही मन सोचते हैं, ‘इस बार तो बड़ी मछली हाथ लगी है। बार-बार ऐसा मौका नहीं मिलता। भारी माल हाथ में लगने वाला है।’

तभी वहाँ पर राजू आ जाता है।
“अरे राजू तुम! अच्छा हुआ तुम आ गए। मैं तुम्हारे पास ही आने वाला था। मुझे माफ करना, उस दिन तुम्हें पहचान नहीं पाया। इतने सारे लोग मेरे पास आते हैं तो ज़रा परेशानी होती है। पर मैं अपनी बातों का बड़ा पक्का हूँ। हाँ, रुको। मैं तुम्हारे सारे पैसे अभी देता हूँ,” धर्मपाल जी घबराकर कहते हैं।
धर्मपाल जी राजू के सारे पैसे उसे लौटा देते हैं।
“माफ करना राजू, मेरे आदमियों ने तुम्हारे साथ उस दिन बदतमीज़ी की। मैं आज ही उनको काम से निकालता हूँ,” धर्मपाल जी झूठ बोलते हैं।
राजू बिना कुछ बोले वहाँ से चला जाता है।
“अरे क्या बात है धर्मपाल जी! आप तो अपनी बातों के बहुत पक्के हैं। तो ठीक है। मैं अपने सारे पैसे आपके पास रख सकता हूँ,” धनराज सेठ इतना बोल ही रहा था कि तभी वहाँ धनराज सेठ का नौकर आ जाता है।
“मालिक मालिक! अब आपको बाहर के शहर में जाने की कोई ज़रूरत नहीं है। अभी-अभी व्यापारियों का संदेश आया है और उसने कहा कि वह खुद हमारे शहर आ रहे हैं,” नौकर कहता है।
“अरे यह तो बहुत बढ़िया बात हुई! अब मुझे इतनी दूर नहीं जाना पड़ेगा। सुन रहे हो धर्मपाल जी? व्यापारी यहाँ आ रहे हैं। अब मुझे नहीं लगता कि यह पैसे आपके पास रखने का कोई मतलब होगा। चलो, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आपने इतनी ईमानदारी दिखाई मुझे। हाँ, पर अगली बार ज़रूर आपके पास ही आऊँगा,” ऐसा बोलकर धनराज सेठ और उसका नौकर वहाँ से अपने पैसे लेकर चले जाते हैं।
‘धत् तेरी की! यह क्या हो गया? यह ₹50,000 तो चले गए। और जो राजू के ₹10,000 हड़प लिए थे, वह भी चले गए,’ धर्मपाल जी अपना माथा पकड़ते हैं।

“आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सेठ जी। अगर आज आप न होते, तो मेरी सारी जमा पूँजी वो धर्मपाल हड़प लेता,” राजू कृतज्ञता से कहता है।
“राजू, कोई बात नहीं। जो व्यक्ति मेहनत और ईमानदारी से कमाता है, ऊपर वाले उसका कभी बुरा नहीं होने देते। और जो हराम की कमाई खाता है, उसका कभी अच्छा नहीं होने देते,” धनराज सेठ मुस्कुराते हुए कहते हैं।
[संगीत]

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