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जगन्नाथ की लीला: गरीब कुम्हार की कहानी
छत्तीसगढ़… जहां प्रकृति ने अपना सबसे अद्भुत कैनवास बुना है। और इन घने जंगलों के बीच, बसा है एक शहर। जिसे लोग ‘पहाड़ों की रानी’ कहते हैं चिरमिरी।
पर हर रानी की अपनी एक कीमत होती है। चिरमिरी का सौंदर्य सिर्फ़ आँखों के लिए नहीं है। यह ज़मीन, अपनी गहराई में, एक ऐसा सच छुपाए बैठी है जो सदियों से इसे खा रहा है।
ये सिर्फ कोयला नहीं है। यह काला सोना है जिसने इस शहर को बनाया, और अब यही काला अंधेरा, इसे धीरे-धीरे निगल रहा है। सवाल यह नहीं है कि ज़मीन के नीचे क्या है… सवाल यह है कि ज़मीन के ऊपर जो रोशनी है, वो कब तक बचेगी?
सन 1930 के दशक में जब पहली बार इस धरती के गर्भ को चीरा गया, तो चिरमिरी सिर्फ एक शहर नहीं बना। यह एक महाद्वीप बन गया। इसे ‘मिनी इंडिया’ कहते थे। महाराष्ट्र, बिहार, पंजाब, बंगाल… हर राज्य के लोग यहां आए, अपने सपने लेकर।
रेलवे, पानी की पाइपलाइन, भव्य क्लब… जो सुविधाएं 1950 में बड़े शहरों में नहीं थीं, वो चिरमिरी में थीं। यहां की हर ईंट समृद्धि की कहानी कहती थी। लेकिन समृद्धि हमेशा एक बोझ लेकर आती है।
इस शहर ने रातों-रात अमीरी देखी। पर क्या आप जानते हैं कि उस धन की असली कीमत क्या थी? यह शहर जितना सतह के ऊपर है, उससे कहीं ज़्यादा, यह सतह के नीचे, अंधेरे में धंसा हुआ है।
जब आप 500 फीट नीचे उतरते हैं, तो समय रुक जाता है। यहां सिर्फ सन्नाटा है, और एक अजीब सी नमी। हर खदान की अपनी एक कहानी है। लेकिन कुछ खदानें, किस्से नहीं, रहस्य दबाए बैठी हैं।
चिरमिरी की एक सबसे पुरानी खदान, जिसे स्थानीय भाषा में ‘काला मुहाना’ कहते हैं, 1980 के दशक में अचानक बंद कर दी गई थी। आधिकारिक रिकॉर्ड बताते हैं कि यह भूस्खलन के कारण हुआ। पर स्थानीय लोग कुछ और कहते हैं।
वो सिर्फ पत्थर नहीं थे। वो ज़मीन चिल्ला रही थी। उस रात, कुछ लोग… और कुछ सामान… वो कभी बाहर नहीं आ पाए। कहते हैं, उस खदान के अंदर आज भी कुछ है, जो इस शहर के गौरव को पकड़कर बैठा है।
क्या यह सिर्फ दुर्घटना थी, या उस रात, चिरमिरी ने हमेशा के लिए अपना एक हिस्सा उस अंधेरे को सौंप दिया? और अगर वह सच कभी सामने आया, तो क्या यह शहर फिर से जाग पाएगा? इस डॉक्यूमेंट्री के अंत में, हम उसी ‘काला मुहाना’ के बंद दरवाज़ों के पीछे की आखिरी बची हुई कहानी तलाशेंगे।
आज, चिरमिरी में वो रौनक नहीं है। जहां कभी गाड़ियों की कतारें लगती थीं, आज वहां सन्नाटा पसरा है। यह सन्नाटा डरावना है। यह आपको महसूस कराता है कि आप समय के एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहां सिर्फ गुज़रा हुआ कल बाकी है।
हर खामोश कमरा एक सवाल पूछता है। कहां गए वो लोग जो यहां रहते थे? उनका शोर, उनकी हंसी… क्या ज़मीन ने उसे भी कोयले की तरह अवशोषित कर लिया?
इस शहर का सबसे बड़ा डर क्या है? भूकंप? बाढ़? नहीं। चिरमिरी का डर है… इसकी अपनी ही ज़मीन। ज़मीन के नीचे खाली हुई सुरंगें किसी भी पल धंस सकती हैं। यह शहर एक खोखली नींव पर खड़ा है। यह सिर्फ एक टाइम बम है, जो टिक-टिक करना कब बंद कर दे, कोई नहीं जानता।
हम वापस आ गए हैं। ‘काला मुहाना’ के द्वार पर। वो जगह, जहां 40 साल पहले, चिरमिरी का एक हिस्सा हमेशा के लिए दफन हो गया था।
आधिकारिक रिकॉर्ड्स में दर्ज है कि इस खदान को ‘स्थायी रूप से असुरक्षित’ घोषित किया गया था। पर हमें यहां पास में एक पुरानी डायरी मिली, जो उस रात के सुपरवाइज़र की थी। डायरी का आखिरी पन्ना।
डायरी में बस एक लाइन लिखी है, कोयला नहीं मिला… वो हमें ले गया। इसका क्या अर्थ था? क्या सचमुच उस रात कोई शैतानी ताकत थी, या यह उस डर की अभिव्यक्ति थी जो खनिकों को उस अंधेरे में महसूस होता था?
चिरमिरी को बनाने वाला काला सोना, असल में इस शहर का काला साया है। यह साया हमेशा यहीं रहेगा।
चिरमिरी सिर्फ़ एक शहर नहीं, यह एक चेतावनी है। कि जब आप धरती के सीने से उसकी दौलत छीनते हैं, तो वह जवाब देती है। उसने चिरमिरी को दौलत दी, पहचान दी… और फिर धीरे-धीरे, शांति से, सब वापस ले लिया।
पहाड़ों की रानी आज भी खड़ी है… पर उस पर जो ग्रहण लगा है, वो इस काले सोने का है। और यह ग्रहण तब तक नहीं हटेगा, जब तक धरती अपना सारा कर्ज़ वापस नहीं ले लेती। चिरमिरी: दफन हुआ अतीत, धंसता हुआ वर्तमान।