Story Now

कहानी: जादुई सोने का पेड़

पात्र:

  • दीना: एक गरीब लेकिन ईमानदार और दयालु कुम्हार।
  • राधा: दीना की पत्नी, जो हमेशा उसका साथ देती है।
  • दीना की माँ: बीमार और बूढ़ी।
  • ठाकुर विक्रम सिंह: गाँव का लालची और क्रूर जमींदार।
  • हीरा और पन्ना: ठाकुर के दो चापलूस आदमी।
  • एक रहस्यमयी साधु: जादुई शक्तियों वाला एक बूढ़ा व्यक्ति।

(स्क्रिप्ट शुरू)

दृश्य 1
EXT. रतनपुर गाँव – दिन

(समय: 00:00 – 02:30)

**(दृश्य: एक छोटा सा, कच्चा घर है। दीना चाक पर मिट्टी के बर्तन बना रहा है। उसके चेहरे पर मेहनत और चिंता की लकीरें हैं। कुछ बने हुए दीये और मटके पास रखे हैं। घर के अंदर से उसकी माँ के खाँसने की आवाज़ आती है।) **

नैरेटर: रतनपुर गाँव में दीना नाम का एक गरीब कुम्हार रहता था। वह अपनी बूढ़ी माँ और पत्नी राधा के साथ एक छोटी सी झोपड़ी में रहता था। दीना बहुत ईमानदार और मेहनती था, लेकिन उसकी कमाई से घर का गुज़ारा बड़ी मुश्किल से होता था।

**(राधा घर से बाहर आती है। उसके हाथ में पानी का लोटा है।) **

राधा: (चिंतित होकर) सुनिए जी, माँ जी की तबीयत ठीक नहीं लग रही है। उनकी खाँसी बढ़ती ही जा रही है। शहर के वैद्य को दिखाना पड़ेगा।

दीना: (काम रोककर, गहरी साँस लेता है) मैं जानता हूँ राधा। लेकिन शहर जाने और वैद्य की दवा का खर्चा हम कैसे उठाएंगे? इस महीने तो बर्तन भी बहुत कम बिके हैं।

राधा: पर हम माँ जी को ऐसे तकलीफ में नहीं देख सकते। कुछ तो करना ही होगा।

दीना: (उठकर) तुम चिंता मत करो। मैं आज बाज़ार में सारे बर्तन बेचकर आऊंगा। भगवान ने चाहा तो सब ठीक हो जाएगा।

**(दीना अपने बनाए हुए बर्तनों को एक टोकरी में रखकर बाज़ार की ओर चल पड़ता है।) **


दृश्य 2
EXT. ठाकुर की हवेली के बाहर – दिन

(समय: 02:30 – 05:00)

**(दृश्य: दीना बाज़ार से निराश होकर लौट रहा है। तभी रास्ते में ठाकुर विक्रम सिंह अपने दो आदमियों, हीरा और पन्ना के साथ उसे रोक लेता है।) **

ठाकुर विक्रम सिंह: (अकड़कर) अरे ओ दीना! कहाँ से आ रहा है? मेरे कर्ज़ के पैसे कब चुकाएगा? पूरे छह महीने हो गए।

दीना: (हाथ जोड़कर) मालिक, थोड़ा और समय दे दीजिए। माँ बीमार है, घर में बहुत तंगी चल रही है। जैसे ही पैसे आएंगे, मैं आपका एक-एक पैसा चुका दूँगा।

ठाकुर विक्रम सिंह: (हँसते हुए) बहाने मत बना! तेरी ये गरीबी की कहानी मैं बचपन से सुन रहा हूँ। देख, तुझे एक हफ्ते की मोहलत देता हूँ। अगर पैसे नहीं मिले, तो तेरी ये झोपड़ी और ज़मीन सब मेरी हो जाएगी। याद रखना!

हीरा: सुना नहीं! ठाकुर साहब ने क्या कहा! निकल यहाँ से!

**(ठाकुर और उसके आदमी हँसते हुए चले जाते हैं। दीना उदास होकर अपने घर की ओर चल पड़ता है।) **


दृश्य 3
EXT. घना जंगल – दोपहर

(समय: 05:00 – 09:00)

**(दृश्य: कुछ दिन बीत गए हैं। दीना जंगल में सूखी लकड़ियाँ काट रहा है, ताकि उन्हें बेचकर कुछ पैसे कमा सके। वह बहुत थक गया है और एक पेड़ के नीचे बैठ जाता है।) **

नैरेटर: दीना ने दिन-रात एक कर दिए, लेकिन वह ठाकुर का कर्ज़ चुकाने लायक पैसे नहीं जोड़ पाया। हताश होकर, वह जंगल में और गहरी लकड़ियाँ खोजने चला गया, जहाँ गाँव का कोई नहीं जाता था।

**(दीना अपनी पानी की बोतल से पानी पीने ही वाला होता है कि उसे एक कमज़ोर आवाज़ सुनाई देती है।) **

साधु: (पेड़ के पीछे से निकलते हुए) बेटा… क्या थोड़ा पानी मिलेगा? मैं कई दिनों से प्यासा हूँ।

**(दीना देखता है कि एक बूढ़ा साधु, जिसके चेहरे पर तेज है, लाठी के सहारे खड़ा है। दीना अपनी बोतल देखता है जिसमें बस थोड़ा सा ही पानी बचा है।) **

दीना: (मन में) इसमें तो बस मेरे लिए ही पानी है। अगर इन्हें दे दिया तो मैं क्या पीऊंगा? …नहीं, यह महात्मा प्यासे हैं। इनकी मदद करना मेरा धर्म है।

**(दीना अपनी बोतल साधु को दे देता है।) **

दीना: लीजिए बाबा। आप पी लीजिए। मेरी चिंता मत करिए।

**(साधु पूरा पानी पी जाता है और मुस्कुराता है।) **

साधु: (आशीर्वाद देते हुए) तुम बहुत दयालु हो बेटा। तुम्हारी ईमानदारी और नेकी से मैं बहुत प्रसन्न हुआ। यह लो।

**(साधु अपनी झोली से एक छोटा, चमकता हुआ बीज निकाल कर दीना को देता है।) **

साधु: इस बीज को अपने घर के आंगन में लगा देना। तुम्हारी सारी परेशानियाँ दूर हो जाएंगी। लेकिन याद रखना, इसका इस्तेमाल कभी लालच के लिए मत करना।

**(साधु यह कहकर जंगल में गायब हो जाता है। दीना हैरान होकर उस बीज को देखता रह जाता है।) **


दृश्य 4
EXT. दीना का घर – रात और सुबह

(समय: 09:00 – 12:00)

**(दृश्य: दीना घर आकर राधा को सारी बात बताता है। वे दोनों मिलकर आंगन में उस बीज को रोप देते हैं। रात होती है। चाँद की रोशनी में बीज से एक पौधा निकलता है और तेज़ी से बड़ा होने लगता है। (टाइम-लैप्स इफ़ेक्ट)। सुबह जब दीना और राधा उठते हैं, तो उनकी झोपड़ी के सामने एक खूबसूरत पेड़ खड़ा होता है, जिस पर सोने के फल लटक रहे होते हैं।) **

राधा: (हैरानी से) हे भगवान! यह तो चमत्कार हो गया! यह फल तो सोने के हैं!

दीना: (आँखों में आँसू लिए) उस साधु ने सच कहा था। हमारी सारी परेशानियाँ अब दूर हो जाएंगी।

**(दीना पेड़ से सिर्फ एक सोने का फल तोड़ता है।) **

राधा: बस एक? सारे क्यों नहीं तोड़ लेते?

दीना: नहीं राधा। साधु ने कहा था, लालच मत करना। हमें जितनी ज़रूरत है, हम उतना ही लेंगे।


दृश्य 5
EXT. गाँव – दिन

(समय: 12:00 – 16:00)

**(दृश्य: दीना शहर जाकर सोने का फल बेच आता है। वह अपनी माँ का इलाज करवाता है। फिर वह ठाकुर की हवेली जाकर उसका सारा कर्ज़ चुका देता है।) **

ठाकुर विक्रम सिंह: (हैरान) इतना पैसा! कहाँ से आया तेरे पास? तूने ज़रूर कोई चोरी की है!

दीना: नहीं मालिक। यह मेरी मेहनत की कमाई है। अब आपका मुझ पर कोई कर्ज़ नहीं।

**(दीना पैसे देकर चला जाता है। ठाकुर विक्रम सिंह शक और जलन से उसे देखता रहता है।) **

नैरेटर: दीना का जीवन बदल गया। उसने एक अच्छा घर बनाया, लेकिन अपनी कुम्हार की कला नहीं छोड़ी। वह गाँव के गरीबों की मदद भी करने लगा। उसकी नेकी के चर्चे दूर-दूर तक होने लगे।

ठाकुर विक्रम सिंह: (अपने आदमियों से) पता लगाओ! आखिर इस दीना के हाथ कौन सा खज़ाना लगा है! जाओ, उस पर नज़र रखो!


दृश्य 6
EXT. दीना का घर – रात

(समय: 16:00 – 20:00)

**(दृश्य: हीरा और पन्ना रात में छिपकर दीना के घर पर नज़र रख रहे होते हैं। वे देखते हैं कि पेड़ पर सोने के फल चमक रहे हैं।) **

पन्ना: (फुसफुसाते हुए) अरे हीरा! देख! इसके घर में तो सोने के फलों का पेड़ है!

हीरा: चुप रह! चल जल्दी से ठाकुर साहब को बताते हैं!

**(दोनों भागकर ठाकुर के पास जाते हैं और उसे सब बता देते हैं।) **

ठाकुर विक्रम सिंह: (लालच से आँखें चमकाते हुए) सोने का पेड़! तो यह बात है! वो पेड़ अब मेरा होगा! आज रात हम उस पेड़ को जड़ से उखाड़कर अपनी हवेली में लगाएंगे!


दृश्य 7
EXT. दीना का घर – आधी रात (क्लाइमेक्स)

(समय: 20:00 – 23:00)

**(दृश्य: ठाकुर अपने आदमियों के साथ दीना के घर पहुँचता है। वे फावड़े से पेड़ को उखाड़ने की कोशिश करते हैं। आवाज़ सुनकर दीना और राधा बाहर आते हैं।) **

दीना: रुक जाओ ठाकुर! यह पाप मत करो! यह जादुई पेड़ है, इसे नुकसान मत पहुँचाओ!

ठाकुर विक्रम सिंह: (धक्का देते हुए) हट जा गरीब! आज से यह पेड़ मेरा है! मैं इसे अपनी हवेली में लगाऊंगा!

**(जैसे ही ठाकुर लालच भरे हाथों से पेड़ के तने को पकड़ता है, एक तेज़ रोशनी चमकती है। (SFX: जादुई गूंज)।) **

नैरेटर: साधु की चेतावनी सच हुई। जैसे ही लालची ठाकुर ने पेड़ को छुआ, पेड़ का जादू उल्टा पड़ गया।

**(पेड़ पर लगे सारे सोने के फल पत्थर में बदल जाते हैं और ज़मीन पर गिरने लगते हैं। पेड़ की डालियाँ सांप की तरह बढ़कर ठाकुर, हीरा और पन्ना को जकड़ लेती हैं।) **

ठाकुर विक्रम सिंह: (चिल्लाते हुए) बचाओ! मुझे छोड़ दो! मुझसे गलती हो गई!

**(पेड़ की जड़ें ज़मीन से निकलकर उन्हें कसकर बांध लेती हैं। सुबह तक वे तीनों पेड़ से बंधे रहते हैं।) **


दृश्य 8
EXT. दीना का घर – सुबह (निष्कर्ष)

(समय: 23:00 – 25:00)

**(दृश्य: सुबह होती है। पूरा गाँव इकट्ठा हो जाता है और ठाकुर और उसके आदमियों की हालत देखकर हैरान रह जाता है। पेड़ वापस सामान्य हो जाता है, लेकिन उस पर अब कोई सोने का फल नहीं था।) **

दीना: (गाँव वालों से) यह पेड़ एक साधु का वरदान था, जिसे ईमानदारी और नेकी से इस्तेमाल करना था। लेकिन ठाकुर के लालच ने इस वरदान को श्राप में बदल दिया।

**(गाँव वाले ठाकुर की लालच पर थू-थू करते हैं। सरपंच ठाकुर को सज़ा सुनाता है।) **

नैरेटर: उस दिन के बाद दीना ने अपनी मेहनत से कमाए धन से गाँव में एक पाठशाला और अस्पताल बनवाया। जादुई पेड़ तो नहीं रहा, लेकिन उसकी नेकी और ईमानदारी की कहानी हमेशा के लिए अमर हो गई।

नैतिक शिक्षा: लालच का फल हमेशा कड़वा होता है, और सच्ची दौलत धन नहीं, बल्कि नेकी और संतोष है।

**(आखिरी दृश्य में दीना और राधा अपने परिवार के साथ खुशी-खुशी रहते हुए दिखाए जाते हैं।) **

(स्क्रिप्ट समाप्त)

Back to top button